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अपनी पसंद का काम करना सबको अच्छा लगता है और अगर नौकरी भी अपनी पसंद की मिल जाए तो बात ही कुछ और है । कुछ ऐसा ही हुआ श्याम के साथ, कॉलेज से निकालते ही, श्याम को उसकी पसंद की नौकरी मिल गयी जिस में उसे काफ़ी आनंद भी आ रहा था और कुछ नया सीखने को भी मिल रहा था। पर उनका ऑफिस घर से काफी दूर था इसलिए अपनी सहूलियत के लिए उन्होंने गाड़ी लेने का निर्णय किया। फिर उस गाड़ी के पैसे भरने के लिए उन्होंने लोन भी लिया। अब श्याम के पास अपनी गाड़ी भी आ गया थी और अच्छी नौकरी भी थी परन्तु दुर्भाग्यवश कुछ दिनों के पश्चात वो एक दुर्घटना के शिकार हो गए। निरंतर आय में अभाव की वजह से श्याम अपना लोन भी नहीं दे पा रहे और क़र्ज़ भी बढ़ता जा रहा था। तभी श्याम के एक मित्र ने उन्हें लोन सेटलमेंट का उपाय सुझाया परन्तु श्याम इस पूरी प्रक्रिया से अनिभिज्ञ थे इसीलिए वो और असमंजस में पड़ गए। तो आईये जानते है क्या है ये लोन सेटलमेंट और भविष्य में लेनदार पर इसके प्रभाव के बारे में ।
लोन सेटलमेंट क्या है?
लोन सेटलमेंट ऋण निपटाने की एक प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत देनदार ऋण की राशि के बदले एकमुश्त राशि देने का प्रस्ताव ग्राहक के समक्ष रखता है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत सर्वप्रथम लोन लेने वाला व्यक्ति देनदार की किश्ते देना बंद कर देता है। उसके उपरान्त वह उस राशि का इस्तेमाल एकमुश्त लोन निपटारे के लिए करता है। जब ग्राहक और लोन देने वाले के बीच समझौता हो जाता है तब उसके अनुरूप एक राशि निश्चित की जाती है जिसको चुकाने के पश्चात देनदार, ग्राहक का लोन खाता बंद कर देता है।
लोन सेटलमेंट के दूरगामी प्रभाव
परिस्थिति के अनुसार के लिए देखा जाए तो प्रक्रिया काफी लुभावनी है परन्तु भविष्य में इस सेटलमेंट के कारण लोन लेने में परेशानियाँ का सामना करना पड़ सकता है । इस तरह के लोन निपटारे से ग्राहक के क्रेडिट स्कोर पर असर पड़ता है जिस से वो भविष्य में किसी भी प्रकार के लोन लेने की योग्यतापूरीनहीं कर पाते हैं । ग्राहक के लोन वापसी की जानकारी विभिन्न फाइनेंसियल इंस्टीट्यूशन के पास रहती है। लोन सेटलमेंट के उपरान्त अक्सर ग्राहक के खाते में ''सेटल्ड'' दर्ज कर दिया जाता है। किसी भी व्यक्ति की वित्तीय दस्तावेज़ में "सेटल्ड" दर्ज़ होने का ये अर्थ होता है उन्होंने लोन की निर्धारित राशि से कम राशि जमा करके लोन के खाते को बंद करवा दिया है। हालांकि यह "अनपेड" दर्ज होने से बेहतर है परन्तु यह फाइनेंसियल इन्टीट्यूशन को यह सन्देश भी देती है ग्राहक भविष्य में फिर ऐसा कर सकता है। किसी भी प्रकार का लोन देने के पूर्व एक कंपनी आपके क्रेडिट स्कोर को मद्देनजर रखते हुए ही लोन देती है। लोन सेटलमेंट करने से क्रेडिट स्कोर पे बुरा प्रभाव पड़ता है और ये प्रभाव न्यूनतम 7 वर्षों तक खाते में दर्ज़ रहता है इसीलिए इससे बचना चाहिए। हालांकि फाइनेंसियल इंस्टीट्यूशन क्रेडिट स्कोर की गणना करने की विधि आम नागरिकों को नहीं बताते है और हर इंस्टीट्यूशन अपने तरीके से इसकी गणना करते है जो हो सकता है दूसरे इंस्टीट्यूशन से भिन्न हो। परन्तु एक मूल बात जो सारे इंस्ट्युशन में सामान रहती है वो यह की बार बार लोन "सेटल्ड " करने से फाइनेंसियल इंस्टीटूट्युशन और उन्हें नए लोन लेने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
क्रेडिट स्कोर में कैसे करे सुधार करे ?
अगर किसी भी वजह से ग्राहक अपने लोन को लौटाने में असक्षम होते है और उन्हें लोन सेटलमेंट का सहारा लेना पड़ता है तो क्रेडिट खाते पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस नकारात्मक छवि को दूर करने का केवल एक ही उपाय है , फिर से लोन लेना। जिस तरह हमने बचपन में सुना था की लोहा लोहे को काटता है ठीक उसी प्रकार लोन की समस्या को दूर करने के लिए ग्राहक को फिर से लोन का ही सहारा लेना होगा। परन्तु ग्राहक को इस लोन की किश्त समय पर देनी होगी और ये कोशिश करनी होगी की किसी भी प्रकार ये लोन सेटल्ड ना हो और समझौते की पूरी राशि जमा हो। लोन लेने के अतिरिक्त एक और उपाय है और उसका स्रोत है क्रेडिट कार्ड। क्रेडिट कार्ड द्वारा भुगतान करने से आपकी क्रेडिट हिस्ट्री में सुधार होगा और स्कोर को हुई छति की भरपाई होगी। कोशिश ये भी होनी चाहिए की कार्ड का बिल निर्धारित समय से पूर्व जमा हो, और किसी भी प्रकार का विलम्ब न हो।
निष्कर्ष:
अंत में हम इस हल पर पहुंचे है की श्याम को लोन सेटलमेंट की जगह कोई और उपाय तलाशना चाहिए जैसे की अपने परिजानों से पैसे लेकर ऋण का निपटारा कर दे जिससे उनका आज भी सुरक्षित रहे और भविष्य भी सुनिश्चित रहे। लोन सेटलमेंट करने से ना केवल उसका क्रेडिट स्कोर ख़राब होगा अपितु आने वाले समय में उसे कोई और लोन लेने में भी दिक्कत होगी।
हीरो वही जो चुने सही।